।।ऊँ।। चिदानन्दरूपः शिवः

अखिल सृष्टी से आदि से विनाश तक जो सर्वकाल में साक्षी रूप से अवस्थित हो नित्य आनन्दस्वरूप है, वही शिव है। उसका जन्म नहीं, मृत्यु नहीं। आदि नहीं, अन्त नहीं । अवतार नहीं किन्तु उसकी लीला का पार नही निर्विकार, निष्काम,अभोगी किन्तु योगी शिव समस्त ऐश्वर्यो के दातार हैं। कहीं केदारखण्ड में, नही वनखण्ड में, कहीं रेखाखण्ड में तो कहीं झारखण्ड में वह अखण्ड शिव अरूप होते हुए भी विदानन्द स्वरूप में विराजमान हैं।
शिवपुराण में प्रसंग आता हैं। शिवको पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा से पार्वती जब अपूर्व तप करने लगीं तब भगवान शिव उसकी परीक्षा के लिए ब्राहम्ण रूप में प्रकट हो गए और शिव-निन्दा करने लगें। भगवती पार्वती ने कहा कि जो शिव-निन्दा करता है केवल वहीं नहीं, उसे सुनने वाला भी पाप का भागी होता है-

" न केवलं भवेत,पापं निन्दा कर्त्तु शिवस्य कि । यो वै श्रृणोति तन्निदां पापभाक् स भवेदिह।।’
श्री रामचरितमानस कारने तो यहां तक कहा दिया- हरि-हर निन्दा सुनर्हि जे काना। होइ पापगोधात समाना।’’
शिव-नन्दा सुनने वाले को जब गोहत्या के समान पाप लगता है, तो शिव - निन्दा करने वाले की क्या दुर्गति होगी, यह अनुमान किया जा सकता है ।
’अशिव वेश शिवधाम कृपाला’ के प्रति जिसकी ऐसी अनन्य भक्ति हो वह पार्वती की कोटिका तपस्वी है। भगवान शिव किसी प्रिय भक्त को निमित्त बनाकर अपना प्रभाव प्रकट करते हैं।
भगवान झाडखण्डनाथ अपने अनन्त ऐश्वर्य सहित अणु-अणु में गुप्त हैं किन्तु अपने उस ऐश्वर्य को प्रकट करने के लिए परम शिवोपासक श्री बब्बू सेठ का चुनाव किया , जिन्होने अपना सर्वस्व शिव को ही समर्पित कर उनकी निष्काम आराधना की। उसी परम्परा का निर्वाह परम तपस्वी त्यागमूर्ति श्रीरतन लाल सोमानी कर रहे है।वर्तमान में श्री जय प्रकाश सोमानी निस्वार्थ भाव से सेवा आराधना कर रहे है । भगवान शिव ने अपने प्रभाव का विस्तार इनको  निमित्त बनाकर किया। ऐसे सन्त प्रणम्य हैं।
 

’’बब्बूसेठस्य आराध्यं, रत्नलालेन सेवितम्।
झाडखणडममहादेवयं वारं-वारं नमाम्यहम्।।’

भगवान शिव की आराधना से तीन अक्षय शक्त्यिॉ प्राप्त होती हैं- प्रभु भक्ति, उत्साह शक्ति और मन्त्र शक्ति-
’ये भजन्ति च तं प्रीत्या शक्त्शिं शंकर सदा।
तस्मै शक्तित्रयं शम्भुः स ददाति सदाव्ययम्।।’

भगवान झाडखण्डनाथ की उपासना उपासक को सर्वशक्तिमान् बना देती हैं। शिव का उपासक कालजयी हो मृत्यु को भी जीत लेता है। भगवान शिव का एक नाम मृत्युंजय भी है-
’तस्यैव भजनाज्जीवो मृत्युंजयति निर्भयः।
तस्मान्मृत्युंजयन्नाग प्रसिध्द भुवनत्रये।।’

जो निम्न भगवान झाडखण्ड का दर्शन करता है; उसे समस्त भयोसे मुक्ति तो मिलती ही है, वह शिवस्वरूप् हो शिवलोक को प्राप्त हो जाता है।
चिदानन्दरूप :शिवोऽहम्-शिवोऽहम्।’
हरिधाम, अटलवन, परिक्रमामार्ग,

आचार्य पीयूष  

वृन्दावन २८१-१२१  उ.प्र